बीजेपी के बुजुर्ग नेता लालकृष्ण आडवाणी के सहयोगी की नई किताब में उनके बारे में एक चौंकाने वाला खुलासा किया गया है। बाबरी मस्जिद के विध्वंस के लिए बीजेपी और संघ के साथ-साथ देश भर में राम मंदिर के नाम पर रथ यात्रा निकालने वाले आडवाणी के भड़काऊ भाषण को भी जिम्मेदार ठहराया जाता है। 32 साल तक आडवाणी के सहयोगी रहे विश्वंभर श्रीवास्तव की किताब में दावा किया गया है कि असलियत में आडवाणी को इस घटना का अफसोस था।
एनबीटी में छपी खबर के मुताबिक किताब के अनुसार, उन्होंने 6 दिसंबर को अयोध्या में दिए अपने भाषण में लगातार कारसेवकों से अपील की थी कि वे बाबरी मस्जिद के गुंबद पर झंडा फहराकर वापस लौट आएं। यह खुलासा आडवाणी पर आई एक हालिया किताब 'आडवाणी के साथ 32 साल'में किया गया है। इसके लेखक आडवाणी के एक पूर्व सहयोगी विश्वंभर श्रीवास्तव हैं।
उल्लेखनीय है कि श्रीवास्तव ने अपनी किसाब में उस घटना का जिक्र करते हुए लिखा है कि 6 दिसंबर को अयोध्या में जब वह भाषण दे रहे थे, तभी किसी ने उन्हें जानकारी दी कि कारसेवक भगवा झंडा फहराने मस्जिद की गुबंद पर चढ़ गए हैं। आडवाणी ने कारसेवकों से कहा था कि वे ऐसा कोई काम न करें, जिससे शर्मिंदगी उठानी पड़े। वह अपने भाषण में बार-बार इसकी अपील करते रहे। इतना ही नहीं, उन्होंने कारसेवकों को समझाने के लिए बाकायदा बीजेपी नेता प्रमोद महाजन को घटना स्थल के पास भेजा, लेकिन कुछ देर बाद महाजन ने आकर आडवाणी को बताया कि कारसेवकों ने ढांचे की नींव खोद दी है।
श्रीवास्तव लिखते हैं कि यह सुनते ही आडवाणी के चेहरे पर अफसोस के भाव उभर आए थे। इसी का नतीजा था कि अगले दिन उन्होंने नेता प्रतिपक्ष के अपने पद से इस्तीफा दे दिया। श्रीवास्तव का कहना था कि वह उस समय आडवाणी के साथ खुद मंच पर मौजूद थे।
विवाद का चोली दामन का साथ यूं तो राजनीति से जुड़ी शख्सियतों पर किताबें जब भी सामने आती हैं तो उससे जुड़ा विवाद भी सामने आ ही जाता है। इस किताब को लेकर विवाद सामने आया है, जिसमें श्रीवास्तव पर आरोप लगा है कि उन्होंने यह किताब आडवाणी की अनुमति के बगैर लिखी। हालांकि श्रीवास्तव ने हमारे सहयोगी अखबार नवभारत टाइम्स से बातचीत में इस आरोप को खारिज किया है।
किताब की लॉन्चिंग के मौके पर श्रीवास्तव ने दावा किया था कि साल 2013 में बीजेपी संसदीय दल की बैठक में आडवाणी जाने के लिए तैयार थे। वह गाड़ी में भी बैठ गए थे, लेकिन परिवार से जुड़े कुछ लोगों ने उन्हें ऐसा करने से रोक लिया। हालांकि यह हिस्सा उनकी किताब का अंश नहीं है, लेकिन उन्होंने यह जानकारी एक सवाल के जवाब में दी।
वंशवाद के खिलाफ थे आडवाणी आडवाणी पर लिखी इस किताब में जिक्र किया गया है कि गुजरात के एक बड़े नेता, आडवाणी के पारिवारिक मित्र और अहमदाबाद के तत्कालीन सांसद हरीन पाठक ने गांधीनगर सीट से आडवाणी के बेटे जयंत को चुनाव लड़वाने की पेशकश की थी, लेकिन आडवाणी ने परिवारवाद की परंपरा का विरोध करते हुए इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। उस समय आडवाणी ने कहा था कि उन्हें परिवारवाद नहीं चलाना।
भले ही आडवाणी का जिक्र लंबे समय तक 'पीएम इन वेटिंग'के तौर पर होता रहा हो, लेकिन किताब में एक जगह बताया गया है कि एनडीए गठबंधन की सरकार बनने से काफी पहले बीजेपी के मुंबई अधिवेशन में आडवाणी ने पीएम के तौर पर खुद अटल बिहारी वाजपेयी का नाम आगे किया था। हालांकि, पीएम के दावेदार के तौर पर तब आडवाणी की चर्चा जोरों पर थी।