भोपाल।कचरे के ढेर में से पन्नियां बीनकर गुजर बसर करने वाली मधु गौर अब अपने जैसे बच्चों की दुनिया बदलने की कोशिश कर रही है। 14 साल की उम्र में वो पहली बार स्कूल गई थी। इस साल उसने 10वीं का प्राइवेट एग्जाम दिया है। अब वो केवल पढ़ाई नहीं कर रही, बल्कि अपने आसपास हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज भी उठाती है। हाल ही में उसने एक घरेलू हिंसा के मामले में मध्यस्थता करते हुए मामला दर्ज कराया है। यह उसके जीवन की बड़ी सफलता है। अब वो एसआई की तैयारी कर रही है।
भोपाल समाचार की रिपोर्ट के अनुसार मधु ने बताया, पापा से अलग होने के बाद हमारे परिवार में मां विमला बौद्ध समेत हम चार बहनें थीं। दो बहनें घर संभालती थीं और मैं अपनी मां व बड़ी बहन के साथ पन्नी बीनने जाती थी। मैं 11 साल की थी, जब पहली बार मां के साथ पन्नी बीनने गई।
दिन भर काम करके हम इतने पैसे कमा लेते थे कि पांच लोगों का परिवार ठीक-ठाक खाना खा सके। इस बीच समाज-सेवी संस्था 'आरंभ'की एक कार्यकर्ता ने मां से मुझे स्कूल भेजने को लेकर बात करनी शुरू की। करीब डेढ़ साल वह दीदी मां को समझाती रहीं और अंतत: मुझे 14 साल की उम्र में मैं पहली बार स्कूल गई। 14 साल की उम्र में पहली क्लास के बच्चों के साथ पढ़ने का अनुभव बहुत खराब था।
उम्र और कद में मुझसे बहुत ही छोटे बच्चों के बीच पढ़ना बड़ा मुश्किल था। खुद भी अजीब लगता था और बच्चे भी मुझे चिढ़ाते थे। कितनी ही बार हुआ कि मैं रोते हुए स्कूल से घर आती थी और फिर कभी स्कूल न जाने की बात कहती थी।
लेकिन, मां ने मेरा हौसला बढ़ाया, समझाया कि पढ़ाई की तो जिंदगी की दूसरी राहें खुलेंगी, नहीं तो पूरी जिंदगी मां की तरह पन्नियां बीनते हुए गुजारनी होगी। बस, इसी डर ने मुझे लगातार स्कूल जाने के लिए प्रोत्साहित किया। पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन किया, तो पहली से सीधे तीसरी में दाखिला दिया गया और फिर सीधे पांचवीं में पढ़ाई की। इस बार मधु ने प्राइवेट कैटेगरी से 10वीं का फॉर्म भरा है।