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रमजा़न जो जाते जाते हमसे कुछ चाहता है?

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मेहदी हसन एैनी | UPUKLive

रायबरेली। बरकतों और रहमतों संग आने वाला पवित्र रमजा़न अब धीरे धीरे हमसे जुदा हो रहा है। रूहानियत और नूरानियत का संगम माहे रमजा़न जो एक डिस्पलिन के मुताबिक़ जिंदगी गुजा़रने का नाम है।  रोजा़ जो इस महीने का सबसे बड़ा अमल है। उसकी हजा़रों हिकमतें और हज़ारों खूबियां हैं। 

रोज़े की एक हिकमत यह भी है की यह एक लंबी मुद्दत तक शरीअत के हुक्मो की लगातार इताअत कराता है।इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में जब इंसान अपने पैदा करने वाले को भी भूल जाता है! एैसे में रोजा़ एक लम्बे वक़्त तक उसे अपने पालनहार की याद में मसरूफ़ रखता है। 
नमाज़ की मुद्दत एक वक़्त में कुछ मिनट से ज्यादा नही होती। ज़कात देने का वक़्त साल भर में सिर्फ एक बार आता है। हज में अलबत्ता एक लंबा समय रब की याद में गुजा़रने का मौका़ मिलता है। मगर इसका मौका ज़िन्दगी भर में एक बार आता है, और वह भी सबके लिए नही। इन सब के बरख़िलाफ़ रोज़ा हर साल पुरे एक महीने तक दिन-रात शरीअते मुहम्मदी की पैरवी की मश्क़ कराता है। 

सुबह सेहरी के लिए उठो, 
ठीक फलां वक़्त पर खाना-पीना सब बन्द कर दो। दिन भर फलां फलां काम कर सकते हो और फलां फलां नही कर सकते। शाम को ठीक फलां वक़्त पर इफ्तार करो, फिर खाना खाकर आराम कर लो, फिर तरावीह के लिए दौड़ो। इस तरह हर साल, पुरे महीने भर, सुबह से शाम तक और शाम से सुबह तक मुसलमान को फोजी सिपाही की तरह पुरे कायदे कानून में बांधकर रखा जाता है और फिर ग्यारह महीने के लिए उसे छोड़ दिया जाता है, ताकि जो तरबियत इस एक महीने में उसने हासिल की है, उसके असरात ज़ाहिर हो और जो कमी पायी जाये वह फिर दूसरे साल की ट्रेनिंग में पूरी की जाय।

इस तरह की ट्रेनिंग के लिए एक एक शख्श को अलग अलग लेकर तैयार करना किसी तरह मुनासिब नही होगा। फ़ौज़ में भी आप देखते है की एक एक शख्श को अलग अलग परेड नही करायी जाती, बल्कि पूरी फ़ौज़ की फौज़ एक साथ परेड करती है। सबको एक वक़्त एक बिगुल की आवाज़ पर उठना और एक बिगुल की आवाज़ पर काम करना होता है, ताकि उनमे जमाअत बन कर एक साथ काम करने की आदत हो और इसके साथ ही वे सब एक दूसरे की ट्रेनिंग के मददगार भी हो, यानि एक शख्स की ट्रेनिंग में जो कुछ कमी रह जाये उसकी कमी को दूसरा और दूसरे की कमी को तीसरा पूरा कर दे।

इसी तरह इस्लाम में भी रमजान का महीना रोज़े की इबादत के लिए खास किया गया है की एक वक़्त में सब मिलकर रोज़ा रखे। इस हुक्म ने इनफ़िरादी इबादत को इज्तिमाई इबादत बना दिया। जिस तरह एक की संख्या को लाख से गुणा करे तो लाख की जबरदस्त संख्या बन जाती है उसी तरह एक आदमी के रोज़ा रखने से जो अख़लाक़ी और रूहानी फायदे हो सकते है, लाखो-करोड़ो आदमियों के मिलकर रोज़ा रखने से वे लाखो करोड़ों गुना बढ़ जाते है। रमजान का महीना पूरी फ़िज़ा को नेकी और परहेज़गारी की रूह से भर देता है। पूरी क़ौम में गोया तक़वा की खेती हरी भरी हो जाती है।

हर शख्स न सिर्फ खुद गुनाहो से बचने की कोशिश करता है, बल्कि अगर उसमे कोई कमज़ोरी होती है तो उसके दूसरे बहुत से भाई जो उसी की तरह रोज़ेदार है, उसके मददगार बन जाते है।फिर आदमी को रोज़ा रखकर गुनाह करते हुए शर्म आती है और हर एक के दिल में खुद ही यह ख्वाहिश उभरती है की कुछ भलाई के काम करे, किसी गरीब को खाना खिलाये, किसी नंगे को कपड़ा पहनायें!

किसी दुखी की मदद करे किसी जगह अगर कोई नेक काम हो रहा है तो उसमे हिस्सा ले और अगर कहीँ खुल्लम खुल्ला बुराई हो रही हो तो उसे रोके।।
रोजे़ की यह खूबियां और ये तका़जे़ हैं!

जिन के बगैर रमज़ान की रूहानियत का इहसास हरगिज़ नहीं हो सकता!

अब सवाल ये है कि 20 रोजे़ गुज़र जाने के बाद हमने उसकी कितनी मांगें पूरी कीं?इस तरबियत के नतीजे में हमने क्या कुछ अ़मल किया?

कितने ग़रीबों को खाना खिलाया! 
कितने नंगों को कपड़ा पहनाया?
अपने पडोसियों के!रिश्तेदारों के!माँ बाप क कितनेे हुकू़क़ अदा किये?

बंदों के हुकू़क़ की अदायगी के साथ साथ खु़दा के कितने हक़ हमने अदा किये!ज़कात कितना अदा किया?मुस्तहिक़ तक उसका कितना हक़ पहुंचाया? 

ये सब सवाल रमजा़न का पवित्र महीना हमसे कर रहा है!
अब हमारी जि़म्मेदारी है कि हम ये तै़ करें कि हमारी आगे की जिंदगी रब चाही गुज़रेगी या मन चाही?
हम गुनाहों से कितना बचेंगें?देश की अमन वा शांति के लिये तरक्की़ के लिये! आपसी भाईचारगी के लिये!
सौहार्द के लिये हमारा रोल क्या होगा?
क्योंकि रोजा़ हमें एक सच्चा पक्का इंसान बनने का पाठ पढ़ाता है!इंसानियत का सबक़ याद कराता है!
तो आइये सब मिलकर इस मेहमान के तका़जो़ को पूरा करें!और ये अह़द करें कि रमजा़न के बाद भी हम रोजा़ रखेंगे!
हम रोजा़ रखेंग् बुराइयों से दूर रहने का!
रोजा़ रखेंगे किसी को तकलीफ़ पहुंचाने से बचने का!
साम्प्रदायिकता की आग से दूर रहने का!
और सब से बढ़ कर हम रोजा़ रखेंगे एक बनने का नेक बनने का!एक इंसान और सच्चा मुसलमान बनने का.
ये रमजा़न जाते जाते हमसे यही चाहता है.
बस अब आअो मिलकर रब चाही जिंदगी गुजा़रने का अह़द करें.

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