
इस चर्च की अभी दीवारें ही खड़ी हुई हैं. एजाज़ भी बाक़ी गांव वालों के साथ खुदाई कर रहे हैं, ईंट पर लेप लगा रहे हैं। गांव के ईसाई समुदाय के लिए पहला चर्च बनाया जा रहा है और इसके निर्माण के लिए मुस्लिम और ईसाई समुदाय के लोग कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे हैं।
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार एजाज़ फ़ारूक़ बताते हैं, “हमारी मस्जिद तो यहाँ कब से मौजूद है लेकिन हमारे ईसाई दोस्तों को भी अधिकार है कि वह अपनी पूजा कर सकें, हमारी मस्जिद है तो उनका चर्च भी गांव में होना चाहिए.”
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ बढ़ती हिंसा और असहिष्णुता की घटनाएं रोज़ सामने आती हैं लेकिन इन्हीं इलाक़ों में ऐसे लोग भी हैं जो भाईचारे की भावना को धर्म और संप्रदाय से ऊपर समझते हैं.
पंजाब में गोजरा के पास यह छोटा सा गांव ऐसी ही कोशिश कर रहा है जहां मुसलमान सीमित कमाई में से पैसा जोड़कर अपने ईसाई पड़ोसियों के लिए एक चर्च बना रहे हैं. अब तक 50,000 रुपए चंदा जमा करके इन लोगों ने चर्च की दीवार खड़ी कर दी है और इन्हें भरोसा है कि भाईचारे की भावना के साथ बाक़ी राशि भी जमा करके 'सेंट जोसेफ़ चर्च'को वास्तविकता बना लेंगे.
फरयाल मसीह भी इन आठ ईसाई परिवारों में शामिल हैं जो दशकों से इस मुस्लिम बहुल गांव में रह रहे हैं. वे एजाज़ फ़ारूक़ के धर्म के नहीं हैं पर पड़ोसी ज़रूर हैं. दोनों सुबह अपने घरों से निकल कर सामने वाले किराने की दुकान पर बैठते हैं, गप्पे लगाते हैं और चाय पीते हैं. उनकी पत्नियां अक्सर एक-दूसरे के घर से खाने-पीने की चीज़ें लेती रहती हैं.
पंजाब के दूसरे क्षेत्रों से अलग यहाँ ईसाई समुदाय की कोई अलग कॉलोनी नहीं है, बल्कि एक घर मुसलमान परिवार का तो दूसरा ईसाई का है. लोग आपस में घुल मिलकर रहते हैं और धर्म के आधार पर भेदभाव की कल्पना शायद कभी की ही नहीं.
फरयाल मसीह कहते हैं, “जब से मैं देख रहा हूँ, हम सब मिलकर ही रहते आए हैं एक दूसरे की खुशी-ग़म, त्योहारों में शरीक होते हैं.” जानकार मानते हैं कि पाकिस्तान और ख़ास तौर पर पंजाब में पिछले कुछ वर्षों में अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ आतंकवाद की घटनाओं में वृद्धि होती नज़र आ रही है.
यह गांव भी गोजरा के क्षेत्र से दूर नहीं है जहां वर्ष 2009 में ईसाई समुदाय के ख़िलाफ़ भीड़ के हमलों में 10 लोग मारे गए थे, उनके घर और चर्च जला दिए गए थे. इस गांव के लोगों की यादें भी अतीत के ख़ून-ख़राबे से छलनी हैं लेकिन यहां के लोग उन बातों को भुला देना चाहते हैं.
एजाज़ फ़ारूक़ कहते हैं, “इसीलिए तो यह चर्च बन रहा है ताकि गोजरा जैसी घटनाएं कभी हमारे गांव में न हों, हमें एक राष्ट्र की तरह साथ रहना होगा, मुसलमान और ईसाई सभी सुरक्षित रहें, हम सब का इसी में फ़ायदा है.”
इसी इलाक़े में रहने वाले पादरी फादर आफ़ताब जेम्स कहते हैं, “एक ओर गोजरा की घटना है तो दूसरी तरफ़ यह गांव जहां मुसलमान ईसाई समुदाय के लिए चर्च बना रहे हैं. लोगों में प्यार से साथ रहने का जुनून है, जहां आग लगाने वाले हैं, वहां आग बुझाने वाले भी तो हैं.”
-बीबीसी रिपोर्ट