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क्यों एक मुस्लिम शायर अनवर जलालपुरी ने उर्दू में लिखी भगवद गीता

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उर्दू मुशायरों  की दुनिया के बेमिसाल नाज़िम अनवर जलालपुरी के बिना न सिर्फ़ भारतीय उपमहाद्वीप बल्कि पूरी दुनिया के वह तमाम हिस्से जहाँ मुशायरे होते हैं, महफ़िल अनवर साहब के  बिना शायद ही पुरी होती हो? अनवर साहब की शायरी भी किसी मायने में कम नहीं।

असल में हम उनकी शायरी को हिन्दुस्तानी ज़बान की शायरी कह सकते हैं।  अनवर नदीम साहब जलालपुरी साहब के  सम्बन्ध में लिखते हैं कि, अनवर जलाल्पुरी की ज़बान उर्दू है, वही दिल्ली, लखनऊ, पटना और रामपुर की उर्दू, मगर उसका लहजा कच्चा-पक्का खालिस अवामी और जलालपुरी है। मैं  भी उसी इलाक़े से हूँ। जहाँ की ज़बान जलाल्पुरी साहब की ज़बान का है, जहाँ वह जन्मे  सन 1946 में। माँ-बाप ने अनवार अहमद नाम दिया। एम0ए0 उर्दू और अँग्रेज़ी में किया। पेशे से अन्ग्रेज़ी के उस्ताद्।

अब तक उर्दू में चार किताबें आ चुकी हैं। 1-खारे पानियों का सिलसिला(ग़ज़ल) 2–खुशबू की रिश्तेदारी(ग़ज़ल) 3-ज़र्बे लाइलाह(नातिया शायरी) 4-जमाले मोहम्मद(नातिया शायरी) टेलीवीज़न धारावाहिक ‘द ग्रेट अकबर के सवाद भी लिखे।

अनवर जलालपुरी को मिलने वाले ईनामों की फ़ेहरिश्त बहुत बडी है। हमारा सरोकार अनवर साहब की शायरी को अन्तर्जाल के इस बडे मीदियम के ज़रिये उन लोगों तक पहुँचाना जो इत्तेफ़क से उनकी शायरी से महरूम हैं। आप की राय का स्वागत है।

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