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जब अजमेर शरीफ में औरतों पर रोक नहीं तो हाजी अली में क्यों?

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राकेश कुमार 


मुसलमान भाई कल तक हिन्दुओं के अंदर दलितों पर और हो रहे जुल्मों के खिलाफ आवाज़ उठाते रहते थे, जब यही तृप्ति देसाई शनि सींगना में आंदोलन कर रही थी तो मुस्लिम भाई इसी तृप्ति देसाई को सही बता रहे थे ,तो आज हाजी अली के अंदर इनके प्रवेश को गलत क्यों मान रहे है।

जबकि अजमेर शरीफ की दरगाह में औरतों पर रोक नहीं है तो हाजी अली में क्यों रोक है ? क्या भारतीय मुसलमान औरतों को अपने बराबर नहीं समझता और यदि नहीं समझता तो लड़कियों को शिक्षा ना देकर उसका शोषण बचपन से ही शुरू कर देना चाहिए। दोस्तों कोई भी धर्म हो हिन्दू या मुस्लिम उसमे महिलाओं को इज्जत सम्मान पूर्णतः दिया गया है। 
जब हज़रत साहब का जन्म हुआ, उस समय अरब देश की सामाजिक स्थिति बहुत खराब थी। महिलाओं का कोई सम्मान नही था। लोग अपनी बेटियों को िजंदा दफन कर देते थे। कबीलों के लोग आपस में लड़ते रहते थे, जिसमें हजारो लोग जान से हाथ धो बैठते। लोग शराब और जुए के आदी हो चुके थे। आपसी भाईचारा और प्यार मोहबत खत्म हो चुके थे। इन बुराइयों के िखलाफ बाद में हज़रत साहब ने पहल की थी।

पैगंबर मुहम्मद ने वर्षों खुद पर कूड़ा फेंकने वाली बुढ़िया को कभी आंख उठाकर भी नहीं देखा । एक दिन जब मुहम्मद साहब नमाज पढ़ने के लिए जा रहे थे और रास्ते में बुढ़िया का कूड़ा ऊपर से उन पर नहीं गिरा तो उन्होंने दरियाफ्त की कि मामला क्या है। बूढ़ी अम्मा आज कहां हैं? उन्होंने मुझ पर कूड़ा क्यों नहीं फेंका, मैं तो इंतजार में था…

लोगों ने बताया कि बूढ़ी अम्मा की तबीयत बहुत ख़राब है और वो घर के अंदर बिस्तर पर है। सो आज आप पर कूड़ा फेंकने बाहर नहीं आ सकी। मुहम्मद साहब तुरंत इजाज़त लेकर उस बुढ़िया के घर के अंदर घुसे और उनका हालचाल पूछा। उनकी दवाई के बारे में पूछा। ये सब देखकर बूढ़ी अम्मा जार-जार रोने लगीं और मुहम्मद साहब से माफी मांगने लगीं। बूढ़ी अम्मा ने कहा कि मैंने जिंदगी भर आपके ऊपर कूड़ा फेंका और आपने उफ्फ तक नहीं की। और आज जब मैं बीमार हूं तो आप मेरी खैरियत जानने आये हैं। आप से अच्छा इंसान इस पूरी कायनात में नहीं हो सकता।

क्या 21 सदी का मुसलमान पैगम्बर हजरत मोहमद साहब को नहीं मानता क्यूंकि वो महिलाओं के शोषण के खिलाफ रहते थे ? क्यूंकि भारत छोड़ सभी मुस्लिम देश पैगम्बर हजरत मोहमद साहब को तो नहीं ही मानते है तभी तो खून खराबे पर उतारु है।

(लेखक फ्रीलांसर जर्नलिस्ट हैं, ये उनके निजी विचार हैं, UPUKLive.com  की सहमति आवशयक नहीं)

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