जान अब्दुल्लाह | UPUKLive
आज कितने मुसलमान अब्बासि सल्तनत के बारे में जानते है, ठीक है जिनकी पढ़ाई कान्वेंट में हुई है उनको शायद न मालूम हो पर जिनकी ज़िन्दगी मदरसे और मौलानाओ के बीच में गुज़री है उनमे इस जानकारी के होने या न होने का अनुपात कितना होगा??
जमाते इस्लामी, जमीयते उलेमा के कुछ मदरसे और नदवा, इनके अलावा ही शायद कोई मदरसा हो, और इनमे से भी कितना है मुझे मालूम नहीं, कि यहाँ के सिलेबस में अब्बासि सल्तनत का ज़िक्र "इस्लामिक गोल्डन एज"पीरियड के आधार पर हो। अब्बासि सल्तनत के 10 महान वैज्ञानिको के नाम कितने मुसलमानो को पता है, (मैं अपनी बात सबसे पहले करूँगा, 10 का नाम मुझे भी नहीं पता, जिनका पता है उनके क्या योगदान है वो भी धुंधला है) पर इसके उल्टे आप मुझसे एक और इतिहास पूछलें जो बिलकुल अब्बासि सल्तनत के वैज्ञानिक दौर के एंगल से उल्टा है यानि मैं आपको बता दूंगा किस बाबा ने 12 साल बाद पूरी कश्ती के लोगो को ज़िंदा कर दिया, कौन बाबा सूरज को ज़मीन पर ले आया, किसने हाथ हिलाया और जन्नत का फूल हाथ में ले लिया, कौन आँख बंद करते ही अपने भक्तो की समस्या और उनके समाधान को निकाल लिया, किसने फ़रिश्ते को झाड़ लगाईं तो सभी रूहे वापस भेज मुर्दो को ज़िंदा कर दिया। यह इतिहास हमारे किताबो में है जो पूरी तरह क़ुरआन और विज्ञानं के विपरीत है। यदि ऐसा कोई बाबा था जिसके पास सब कुछ करने और जानने की शक्ति थी तो बोईंग या जेट का फॉर्मूला मुसलमानो को न बता कर उसने सबसे बड़ा धोखा मुसलमानो के साथ किया है
यह सब अंट शंट बाते आपको मैं इसलिए भी बता सकता हूँ क्योंकि मस्जिद से लेकर जिस भी इस्लामी सभा में हम जाते रहे 100 में 98 बस यही पौराणिक बाते करते रहे। यही हमे सिखाया और साथ में बताया गया कि साइन्स का इल्म ईसाई और यहूदी का ईजाद करदा है। बेमतलब हमारे दिलो पहले ईसाई और यहूदी की नफरत डाली गयी फिर अपने ही मुसलमानो भाइयो को हमने ईसाई और यहूदी घोषित किया।
अब्बासि सल्तनत के उलेमा और आज के कुछ उलेमा में एक छोटे से फर्क का बड़ा उदाहरण यह है कि जब बिरूनी ने 600 साल पहले कहा था दुनिया अपनी धुरी पर घूमती है तो उस वक़्त उसे गैलेलियो की विरोध का सामना नहीं करना पड़ा था। आज आप यह करके देख लीजिये 100 मदरसो में जाएंगे विज्ञान का सिलेबस लागू करवाने तो 80 मार के भगा देंगे।
आज अगर हमारे मदरसो में केमिस्ट्री लैब नहीं है तो इसका मतलब यही है कि इब्न हैयान को नहीं पढ़ाया गया
आज यदि मदरसे के बालको को अलजेब्रा में रूचि नहीं तो इसका मतलब यही है कि अबु ज़फर मोहम्मद इब्न मूसा अल ख्वारिज्मी को नहीं पढ़ाया गया।
आज यदि बोईंग का मोडल तक नहीं बना सकते तो मतलब यही है कि वो अब्बास इब्न फरनास को नहीं जानते
यह तरीका यह सेलबस यह पद्धति मुस्लिमों को बदलनी होगी। वो काम अवश्य ही करने होंगे जो हमारे "साइंटिफिक बुज़ुर्गो"ने किये है। उसी इल्म पर, जिसे आज विज्ञान और उस ज़माने में "मुशाहीदात और तजुर्बात से हासिल होने वाला इल्म"कहा जाता था , वापस जाना होगा।
यह नींद बस 200 या 250 साल पुरानी है। इसी में दुनिया बदली है। जिसने मेहनत की वो आगे गया है वरना क्या मुश्किल था कि जिस समुदाय का टीपू राकेट तकनीक दे गया था वो समुदाय आज कलम चलाने से क़ासिर है।
मैं जानता हूँ एक आएगा, इधर उधर बण्डल मार आत्मसात करेगा पर मुझे उसकी परवाह नहीं क्योंकि जो मेरे जैसा दर्द सीने में रखते है वो इस बात की रूह को समझ चुके होंगे और इस तरफ कदम बढ़ाएंगे। यह पोस्ट उसके लिए न थी न है न होगी।
अगर मुसलमान कल अपने बालको मदरसे भेजते थे तो वो जानते थे इसमें से बिरूनी, हय्य्न या ख्वारीज़मी निकलेगा, आज नहीं भेजते क्योकि वो जानते है कि ऐसा होने कि दर 100 में से 5 है।
मदरसो को सेलेबस में सुधार करने की आवश्यकता है वो जिन्होंने कर लिया उनको मुबारकबाद