अज़हर उमरी | UPUKLive
आगरा। कोई शायर आवामी शायर कैसे बनता है, सेंट जोंस कालेज में आयोजित “यादे नज़ीर अकबराबादी ” सेमिनार में जब पर प्रकाष डाला गया तो एक ही यह राय सामने आई कि उनकी नज़मों से 18वीं सदी का इतिहास लिखा जा सकता है। उनकी षायरी में उस समय की समाजी और आर्थिक हालत को देखा जा सकता है। वह अपनी नजमों में उसी जबान का प्रयोग करते हैं, जो उनके इर्द गिर्द बोली या समझी जाती थी। उनके इस फन ने उर्दू षायरी को महलों से निकालकर आम लोगों तक पहुँचाया।
फख़रूद्दीन अली अहमद मैमोरियल कमेटी लखनऊ के तत्वावधान में ‘‘यादे नज़ीर अकबराबादी’’ पर दो दिवसीय कार्यक्रम में 29 मई को सुबह नौ बजे सेन्ट जॉन्स कॉलेज के हॉल में ‘‘नजी़र की अवामी शायरी’’ पर सेमीनार का आयोजित किया गया।
सेमीनार की सेन्ट जॉन्स कॉलेज के प्राचार्य पी.ई.जोसेफ ने सरपरस्ती की, कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर षाफई किदवई ने की, संचालन प्रोफेसर सोबान सईद ने किया। मुख्य अतिथि डिप्टी डॉक्टर काजी उबेद उर रहमान हाषमी फख़रूद्दीन अली अहमद मैमोरियल कमेटी लखनऊ की प्र्रतिनिधि रेषमा विषिश्ट अतिथि के रूप् में उपस्थित रही। कार्यक्रम में विष्वविख्यात कार्यक्रम में विश्वविख्यात षिक्षा विद्ों ने नजीर अकबारादी की आवामी षायरी पर अपने षोध पत्र प्रस्तुत किये।षोध पत्र प्रस्तुत करने वाले मुख्य रूप् से प्रोफेंसर उबेद उर रहमान हाषमी, डॉक्टर मौला बक्ष, डॉक्टर सोबान सईद, डॉक्टर नसरीन बेगम, डॉक्टर श्री भगवान षर्मा, डॉक्टर मुहम्मद अकमल, डॉक्टर पंकज पराषर, डॉक्टर जांवेद अख़्तर, डॉक्टर राषिद अनवर राषिद, महमूदा, और सादिया सलीम ने अपने षोध पत्र प्रस्तुत करें। अन्त में प्रोफेसर षाफ्ये किदवई ने अपने अध्यक्षयी संबोधन में सभी वक्ताओं के दिये हुए व्याख्यान प्रकाष डालते हुए कहाकि नजीर अकबराबदी पर जितने षोध पत्र पढ़े जाये उतने कम है यह एक एैसा विशय जिस पर हमेषा षोध की आवष्यकता रहती है। कार्यक्रम के संयोजक प्रोफेसर एस.ए.ए. अशरफी ने अपने संबोधन में कहा कि नजीर अकबराबादी पर समय समय पर विभिन्न जगह गोश्ठियां एवं सेमीनार का आयोजन होता रहा है। नजीर अकबराबादी आवाम के षायर थे जो आज भी आवाम के दिलों में रहते हैं उनका कलाम न हिन्दू था न मुस्लिम। इस मौके पर सैय्यद खादिम अली हाषमी, षाहिद नदीम, रईस अकबराबादी, वकील अहमद, मुहम्मद अरषद, नफीस उद्दीन, अफजाल, आदि लोग मौजूद रहे।