देश में प्रत्येक सरकार के समय में दंगे हुए है। याद करें तो दंगों की भयावक तस्वीर, लुटती अस्मत, मरती इंसानियत औऱ उस तस्वीर में किसी न किसी संस्था या राजनेता का होना साफ-साफ तो नजर आता है लेकिन इन दंगो में इँसाफ के नाम पर अखबारों में सुर्खियां कुछ इस तरह बनती है कि फलाँ राजनेता औऱ फलाँ संस्था को मिली क्लीन चिट। इस क्लीन चिट नामक पुड़िया से सबकुछ क्लीन हो जाना सबको दिखलाई देता है।
इस इतिहास की अगर बात करें तो भागलपुर दंगो में दोषी कौन था, 1992 दंगो में दोषी कौन था, गुजरात दंगो में कौन था, अभी हाल में घटित मुज्जफरनगर दंगो में दोषी कौन था। जो था शायद नहीं था यही मान लिया जाए क्योंकि कानूनी बेड़ियाँ इसलिए नहीं बनी है कि माननीयों को लगा दी जाएं या फिर कल के सम्मानीयों को सज़ा दी जाएं।
मुज्जफरनगर दंगो में उत्तर प्रदेश सरकार के मुखिया मुख्यमंत्री को क्लीन चिट मिल गई है। जबकि फिलहाल भाजपा-बसपा विपक्षी दलों को इसका दोषी ठहराया गया है। सपा सरकार ने सहाय आयोग की रिपोर्ट को धार बनाकर प्रिंट मीडिया औऱ सोशल मीडिया को भी इन दंगो को पीछे जिम्मेदार बताया। बोलता हिंदुस्तान