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क्या देवबंदी-बरेलवी कभी नहीं हो सकते एक?

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मुहम्मद तय्यब | UPUKLive


इख़्तिलाफ़ और इत्तेहाद क्या ये दो विपरीत बाते हैं ? क्या जहाँ इख़्तिलाफ़ होता है वहां इत्तेहाद नही होता ? अगर इत्तेहाद में इख़्तिलाफ़ हो सकता है तो इख़्तिलाफ में इत्तेहाद क्यों नही हो सकता ?

इन बातो को समझने के लिए चलिए उस होटल पर चलते हैं जहाँ पड़ी टेबल और कुर्सियो पर अलग अलग पसन्द का खाना खाने वाले बेशुमार लोग एक ही छत के नीचे बैठे हुए हैं किसी को चिकन पसन्द है तो किसी को दाल पसन्द है कोई निहारी खा रहा है तो कोई कीमा खा रहा है दो अलग अलग पसन्द वाले लोग एक ही टेबल पर दो अलग अलग किस्म के खाने खा रहे हैं गोया की उनकी पसन्द में खुला हुआ इख़्तिलाफ़ है लेकिन कोई किसी की पसन्द का विरोध हरगिज़ नही करता देखा गया इसकी वजह सिर्फ ये है की तमाम लोगों का होटल में जमा होने का मकसद एक ही है सब लोगो में इस बात पर इत्तेहाद है की हम लोग यहाँ अपनी भूख मिटाने आये हैं जो की हमारा मकसद है हालाकि हमारी पसन्द में इख़्तिलाफ़ है लेकिन एक दूसरे की पसन्द का विरोध कोई नही करता नज़र आता है
मालूम ये हुआ मुसलमानो में इख़्तिलाफ़ के होते हुए इत्तेहाद कायम किया जा सकता है अगर हम सबकी फ़िक्र एक ही हो लेकिन इसकी अव्वल शर्त ये है की हमे उम्मत के लिए ऐसे होटल को तलाश करना होगा जहाँ सबको सबकी पसन्द के मुताबिक़ भूख मिटाने की आज़ादी हो एक दूसरे का कोई विरोध न हो ।

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