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इतिहास की चुनिंदा महिला रत्नो में से एक हैं रज़िया सुल्तान

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रज़िया सुल्तान भारत की पहली शासिका थी । उनका पूरा नाम जलॉलात उद-दिन रज़िया था । रज़िया के जन्म की तारीख को लेकर इतिहासकारो में मतभेद हैं । उनका जन्म सन 1205 में उत्तर प्रदेश के बदायूं में हुआ था ।

रज़िया सुल्तान मुस्लिम एवं तुर्की इतिहास कि पहली महिला शासक थीं। उन्होंने लगभग 5 वर्षों तक दिल्ली की सल्तनत को संभाला | उसका पूरा कार्यकाल संघर्षों में बीता | रजिया गुलाम वंश के सुल्तान इल्तुतमिश की पुत्री थी | जिस समय रजिया गद्दी पर बैठी, उसके चारों तरफ घोर संकट छाया हुआ था | दिल्ली सल्लनत के अमीर एवं दरबारी अपने ऊपर एक स्त्री का शासन होते नहीं देख सकते थे | इसलिए वह लगातार उसके विरुद्ध षड्यंत्र करते रहते थे |
रज़िया को 12 अप्रैल 1236 को उसके पिता शम्स-उद-दिन इल्तुतमिश के निधन के बाद दिल्ली का सुल्तान बनाया गया। इल्तुतमिश, एकमात्र पहले ऐसे मुस्लिम शासक थे, जिनकी मौत के बाद किसी महिला को उत्तराधिकारी नियुक्त किया। पहले इल्तुतमिश के बडे बेटे को उत्तराधिकारी के रुप में घोषित किया गया था, लेकिन उसकी कम उम्र में ही मृत्यु हो गयी थी । इल्तुतमिश की मौत के बाद मुस्लिम वर्ग रज़िया के राज सिंहासन सँभालने का विरोध किया, इसलिए इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद उसके छोटे बेटे रक्नुद्दीन फ़िरोज़ शाह को राजसिंहासन पर बैठाया गया।

रक्नुद्दीन, का शासन बहुत ही कम समय के लिये था, इल्तुतमिश की विधवा, शाह तुर्कान का शासन पर नियंत्रण नहीं रह गया था। विलासी और लापरवाह रक्नुद्दीन के खिलाफ जनता में इस सीमा तक आक्रोश उमड़ा, कि ९ नवंबर १२३६ को रक्नुद्दीन तथा उसकी माता, शाह तुर्कान की हत्या कर दी गयी। उसका शासन मात्र छह माह का था। इसके पश्चात सुल्तान के लिए अन्य किसी विकल्प के अभाव में मुसलमानों को एक महिला को शासन की बागडोर देनी पड़ी।। और रजिया सुल्तान दिल्ली की शासिका बन गई।

शासन कार्यों में रजिया की रुचि अपने पिता के शासन के समय से ही थी। गद्दी संभालने के बाद रज़िया ने रीतिरिवाज़ों के विपरीत पुरुषों की तरह सैनिकों का कोट और पगडी पहनना पसंद किया। बल्कि, बाद में युद्ध में बिना नकाब पहने शामिल हुई।

रज़िया अपनी राजनीतिक समझदारी और नीतियों से सेना तथा जनसाधारण का ध्यान रखती थी। वह दिल्ली की सबसे शक्तिशाली शासक बन गयीं थीं।

रज़िया और उसके सलाहकार, जमात-उद-दिन-याकुत, एक हब्शी के साथ विकसित हो रहे अंतरंग संबंध की बात भी मुसलमानों को पसंद नहीं आई। रज़िया ने इस पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया किंतु उसका इस संबंध के परिणाम को कम आंकना अपने राज्य के लिये घातक सिद्ध हुआ।

रज़िया और याकुत प्रेमी थे; अन्य स्रोतों के अनुसार वे दोनों करीबी दोस्त/विश्वास पात्र थे। इस सबसे रज़िया ने तुर्की वर्ग में अपने प्रति ईष्या को जन्म दे दिया था, क्योंकि, याकुब, तुर्क नहीं था और उसे रज़िया ने अश्वशाला का अधिकारी नियुक्त कर दिया था। भटिंडा के राज्यपाल मल्लिक इख्तियार-उद-दिन-अल्तुनिया ने अन्य प्रान्तीय राज्यपालों, जिन्हें रज़िया का अधिपत्य नामंजूर था, के साथ मिलकर विद्रोह कर दिया।

रज़िया और अल्तुनिया के बीच युद्ध हुआ जिसमें याकुत मारा गया और रज़िया को बंदी बना लिया गया। मरने के डर से रज़िया अल्तुनिया से शादी करने को तैयार हो गयी। इस बीच, रज़िया के भाई, मैज़ुद्दीन बेहराम शाह, ने सिंहासन हथिया लिया। अपनी सल्तनत की वापसी के लिये रज़िया और उसके पति, अल्तुनिया ने बेहराम शाह से युद्ध किया, जिसमें उनकी हार हुई। उन्हें दिल्ली छोड़कर भागना पड़ा और अगले दिन वो कैथल पंहुचे, जहां उनकी सेना ने साथ छोड़ दिया। वहां जाटों से हुए संघर्ष में १४ अक्टूबर १२४० को दोनों मारे गये। बाद में बेहराम को भी अयोग्यता के कारण गद्दी से हटना पड़ा।

सिद्ध इतिहासकार मिन्हाज-उस-सिराज ने लिखा है, “रजिया एक महान शासक, कुशाग्र बुध्दी, न्यायप्रिय, हितकारी, विव्दानों की आश्रयदाता, प्रजा का कल्याण करने वाली एवं सामरिक गुणों को रखने वाली स्त्री शासक है |” गद्दी पर बैठते ही रजिया ने पर्दा उतार फेका और पुरूषों जैसे वस्त्र एवं चोगा धारण कर लिए | वह बड़े प्रभावशाली ढंग से अपना दरबार चलाती थी |

पंजाब, बंगाल, बिहार सहित देश के अधिकांश भाग उसके अधिकार में आ गए थे | दिल्ली में नुरुद्दीन के विद्रोह को जब उसकी सेना ने दबा दिया, तो इससे भयभीत होकर कई विरोधी उसकी ओर आ गए | रजिया के पतन के दो प्रमुख कारण माने जाते हैं | पहला, उसका स्त्री होना एवं दूसरा, एक एबीसीनिया निवासी दास जलालुद्दीन याकूत से उनकी अत्यधिक निकटता | इस बात को लेकर इब्नबतूता एवं फरिश्ता जैसे इतिहासकार उसपर मर्यादा भंग करने का आरोप लगाते हैं |

याकूत पर रजिया की विशेष कृपा दृष्टि थी | इससे तुर्क सरदार दोनों को घृणा से देखने लगे और अवसर पाते ही उन्होंने लोगों को भड़काकर विद्रोह कर दिया | सबसे पहले लाहौर, फिर भटिंडा में विद्रोह हुआ | रजिया ने लाहौर का विद्रोह सफलतापूर्वक दबा दिया | मगर जब भटिंडा के प्रशासन अल्तुनिया से युद्ध कर वह याकृत के साथ दिल्ली आ रही थी, तो 14 अक्तुबर, 1240 को मार्ग में उसका वध कर दिया गया |

एक स्त्री होते हुए भी रजिया ने जिस निडरता के साथ संकटो का सामना किया, उसके कारण ही सभी आधुनिक इतिहासकार उसकी प्रशंसा करते हैं | एक इतिहासकार ने तो यहां तक लिखा है कि “वह स्त्री होकर भी पुरुष का मस्तिष्क रखती थी एवं बीस पुत्रों से भी बढ़कर थी |”

कब्र पर विवाद :

दिल्ली के तख्त पर राज करने वाली एकमात्र महिला शासक रजिया सुल्तान व उसके प्रेमी याकूत की कब्र का दावा तीन अलग अलग जगह पर किया जाता है। रजिया की मजार को लेकर इतिहासकार एक मत नहीं है। रजिया सुल्ताना की मजार पर दिल्ली, कैथल एवं टोंक अपना अपना दावा जताते आए हैं। लेकिन वास्तविक मजार पर अभी फैसला नहीं हो पाया है।

वैसे रजिया की मजार के दावों में अब तक ये तीन दावे ही सबसे ज्यादा मजबूत हैं। इन सभी स्थानों पर स्थित मजारों पर अरबी फारसी में रजिया सुल्तान लिखे होने के संकेत तो मिले हैं लेकिन ठोस प्रमाण नहीं मिल सके हैं। राजस्थान के टोंक में रजिया सुल्तान और उसके इथियोपियाई दास याकूत की मजार के कुछ ठोस प्रमाण मिले हैं।

यहां पुराने कबिस्तान के पास एक विशाल मजार मिली है जिसपर फारसी में ’सल्तने हिंद रजियाह’ उकेरा गया है। पास ही में एक छोटी मजार भी है जो याकूत की मजार हो सकती है। अपनी भव्यता और विशालता के आकार पर इसे सुल्ताना की मजार करार दिया गया है। स्थानीय इतिहासकार का कहना है कि बहराम से जंग और रजिया की मौत के बीच एक माह का फासला था।

इतिहासकार इस एक माह को चूक वश उल्लेखित नहीं कर पाए और जंग के तुरंत बाद उसकी मौत मान ली गई। जबकि ऐसा नहीं था। जंग में हार को सामने देख याकूत रजिया को लेकर राजपूताना की तरफ निकल गया। वह रजिया की जान बचाना चाहता था लेकिन आखिरकार उसे टोंक में घेर लिया गया और यहीं उसकी मौत हो गई

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